सप्तम भाव में स्थित शनि का फल (Saturn in Seventh House)
शनि फल विचार
यहां स्थित शनि व्यक्तिगत जीवन में अच्छे परिणाम नहीं देता है। जीवन साथी के शरीर का ऊपरी भाग बहुत सुंदर नहीं होता। विवाह से धन लाभ होता है। कभी-कभी दो विवाह होने की सम्भावना भी बनती है। दूसरे विवाह के बाद भाग्योदय होने की बात ज्योतिष शास्त्रों में कही गई है। लेकिन जीवन साथी का स्वभाव मनोनुकूल न होने की स्थिति में दाम्पत्य जीवन दुष्प्रभावी रहने की सम्भावना बनी रहती है। कभी-कभी अविवाहित रहने की इच्छा भी करती है। संतान बिलम्ब से होती है।
ठेकेदारी, कोयला, लोहा, खदानों आदि से जुडे कामों से लाभ मिल सकता है। किसी विदेशी काम या विदेशी माल में एजेन्ट का काम करने से भी लाभ मिलता है। आप शिक्षक, प्रध्यापक, गणक आदि कामों से जुड कर भी आजीविका कमा सकते हैं। बाल्यावस्था में माता पिता को लेकर कुछ कष्ट उठाने पड सकते हैं। बावन, तिरपन साल की उम्र में जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है।
यहां स्थित शनि के अशुभ प्रभावों की चर्चा करते हुए ज्योतिषीय ग्रंथों मेम कहा गया है कि संतान को कष्ट हो सकता है। मन अशांत रह सकता है। दिलोदिमाग में एक अजीब सी घबराहट रह सकती है। समय-समय पर आने वाली आर्थिक समस्याएं विचलित कर सकती हैं। शरीर में आए दिन कोई न कोई रोग बना रह सकता है।
शनि ग्रह, कुंडली में स्थित 12 भावों पर अलग-अलग तरह से प्रभाव डालता है। इन प्रभावों का असर हमारे प्रत्यक्ष जीवन पर पड़ता है। ज्योतिष में शनि एक क्रूर ग्रह है, परंतु यदि शनि कुंडली में मजबूत होता है तो जातकों को इसके अच्छे परिणाम मिलते हैं जबकि कमज़ोर होने पर यह अशुभ फल देता है। आइए विस्तार से जानते हैं शनि ग्रह के विभिन्न भावों पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है -
वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का प्रत्येक भाव में प्रभाव
ज्योतिष में ग्रह
ज्योतिष में शनि ग्रह का महत्व
वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का बड़ा महत्व है। हिन्दू ज्योतिष में शनि ग्रह को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है। यह मकर और कुंभ राशि का स्वामी होता है। तुला राशि शनि की उच्च राशि है जबकि मेष इसकी नीच राशि मानी जाती है। शनि का गोचर एक राशि में ढ़ाई वर्ष तक रहता है। ज्योतिषीय भाषा में इसे शनि ढैय्या कहते हैं। नौ ग्रहों में शनि की गति सबसे मंद है। शनि की दशा साढ़े सात वर्ष की होती है जिसे शनि की साढ़े साती कहा जाता है।
समाज में शनि ग्रह को लेकर नकारात्मक धारणा बनी हुई है। लोग इसके नाम से भयभीत होने लगते हैं। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। ज्योतिष में शनि ग्रह को भले एक क्रूर ग्रह माना जाता है परंतु यह पीड़ित होने पर ही जातकों को नकारात्मक फल देता है। यदि किसी व्यक्ति का शनि उच्च हो तो वह उसे रंक से राज बना सकता है। शनि तीनों लोकों का न्यायाधीश है। अतः यह व्यक्तियों को उनके कर्म के आधार पर फल प्रदान करता है। शनि पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी होता है।
ज्योतिष के अनुसार शनि ग्रह का मनुष्य जीवन पर प्रभाव
शारीरिक रूप रेखा - ज्योतिष में शनि ग्रह को लेकर ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में शनि ग्रह लग्न भाव में होता है तो सामान्यतः अनुकूल नहीं माना जाता है। लग्न भाव में शनि जातक को आलसी, सुस्त और हीन मानसिकता का बनाता है। इसके कारण व्यक्ति का शरीर व बाल खुश्क होते हैं। शरीर का वर्ण काला होता है। हालाँकि व्यक्ति गुणवान होता है। शनि के प्रभाव से व्यक्ति एकान्त में रहना पसंद करेगा।
बली शनि - ज्योतिष में शनि ग्रह बली हो तो व्यक्ति को इसके सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि तुला राशि में शनि उच्च का होता है। यहाँ शनि के उच्च होने से मतलब उसके बलवान होने से है। इस दौरान यह जातकों को कर्मठ, कर्मशील और न्यायप्रिय बनाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता प्रदान मिलती है। यह व्यक्ति को धैर्यवान बनाता है और जीवन में स्थिरता बनाए रखता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति की उम्र में वृद्धि होती है।
पीड़ित शनि - वहीं पीड़ित शनि व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की परेशानियों को पैदा करता है। यदि शनि मंगल ग्रह से पीड़ित हो तो यह जातकों के लिए दुर्घटना और कारावास जैसी परिस्थितियों का योग बनाता है। इस दौरान जातकों को शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए शनि के उपाय करना चाहिए।
रोग - ज्योतिष में शनि ग्रह को कैंसर, पैरालाइसिस, जुक़ाम, अस्थमा, चर्म रोग, फ्रैक्चर आदि बीमारियों का जिम्मेदार माना जात है।
कार्यक्षेत्र - ऑटो मोबाईल बिजनेस, धातु से संबंधित व्यापार, इंजीनियरिंग, अधिक परिश्रम करने वाले कार्य आदि कार्यक्षेत्रों को ज्योतिष में शनि ग्रह के द्वारा दर्शाया गया है।
उत्पाद - मशीन, चमड़ा, लकड़ी, आलू, काली दाल, सरसों का तेल, काली वस्तुएँ, लोहा, कैमिकल प्रॉडक्ट्स, ज्वलनशील पदार्थ, कोयला, प्राचीन वस्तुएँ आदि का संबंध ज्योतिष में शनि ग्रह से है।
स्थान - फैक्टी, कोयला की खान, पहाड़, जंगल, गुफाएँ, खण्डहर, चर्च, मंदिर, कुंआ, मलिन बस्ती और मलिन जगह का संबंध शनि ग्रह से है।
जानवर तथा पशु-पक्षी - ज्योतिष में शनि ग्रह बिल्ली, गधा, खरगोश, भेड़िया, भालू, मगरमच्छ, साँप, विषैले जीव, भैंस, ऊँट जैसे जानवरों का प्रतिनिधित्व करता है। यह समुद्री मछली, चमगादड़ और उल्लू जैसे पक्षियों का भी प्रतिनिधित्व करता है।
जड़ी - धतूरे की जड़ का संबंध शनि ग्रह से है।
रत्न - नीलम रत्न शनि ग्रह की शांति के लिए धारण किया जाता है।
रुद्राक्ष - सात मुखी रुद्राक्ष शनि ग्रह के लिए धारण किया जाता है।
यंत्र - शनि यंत्र।
मंत्र -
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।
शनि का तांत्रिक मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः।।
शनि का बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
धार्मिक दृष्टि से शनि ग्रह का महत्व
हिन्दू धर्म में शनि ग्रह शनि देव के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक शास्त्रों में शनि को सूर्य देव का पुत्र माना गया है। शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि सूर्य ने श्याम वर्ण के कारण शनि को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया था। तभी से शनि सूर्य से शत्रु का भाव रखते हैं। हाथी, घोड़ा, मोर, हिरण, गधा, कुत्ता, भैंसा, गिद्ध और काैआ शनि की सवारी हैं। शनि इस पृथ्वी में सामंजस्य को बनाए रखता है और जो व्यक्ति के बुरे कर्म करता है वह उसको दण्डित करता है। हिन्दू धर्म में शनिवार के दिन लोग शनि देव की आराधना में व्रत धारण करते हैं तथा उन्हें सरसों का तेल अर्पित करते हैं।
खगोलीय दृष्टि से शनि ग्रह का महत्व
खगोल विज्ञान के अनुसार शनि एक ऐसा ग्रह है जिसके चारो ओर वलय (छल्ला) हैं। यह सूर्य से छठा तथा सौरमंडल में बृहस्पति के बाद दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। यह पीले रंग का ग्रह। शनि के वायुमंडल में लगभग 96 प्रतिशत हाइड्रोजन और 3 प्रतिशत हीलियम गैस है। खगोल शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह के छल्ले पर सैकड़ों प्राकृतिक उपग्रह स्थित हैं। हालाँकि आधिकारिक रूप से इसके 53 उपग्रह हैं।
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